कभी में सोचता हूँ ये कर्ज कैसे चुकाऊंगा सिर्फ सोचता हूँ अपने सपनों को लेके तुम्हारे सपनों को सच कैसे कर पाऊँगा तुमसे दूर जब जाऊगा तो निगाहें कैसे मिलेंगी? तुमने तो जिंदगी को अपना कभी माना ही नही इस जिंदगी को तुम्हारी ख्वाहिशें कैसे बनाऊँगा? में क्या कर सकता था ये समझ नही थी मुझे बहका में कभी ये खबर नही थी तुझे हर गलती पर डांटा तुमने पर तब क्यों नही? इतना भरोसा कर मुझ पर, तब रोका क्यों नही? ये बिश्वास, ये भरोसा सिर्फ शब्द बन कर रह गए कभी तुम्हारी ख़ामोशी एक प्रश्न बन कुछ कह गए क्यों नही में समझ पाया तुम्हारे चेहरे की शिकन को? भले तुम माफ़ कर दो पर खुद को कैसे कर पाउँगा? अभी भी तुमने जिंदगी में हार नही मानी है बेटे ने सिर्फ अपनी मंजिल पाने की ठानी है फिर भी तुम खुश हो ये सब समझ कर समझ नही आता ये माँ-बेटे की केसी कहानी है? इस कहानी का क्या आंजाम होगा ये मुझे पता नही? तुम्हारा बेटा अब सिर्फ तुम्हारा है, इसमें कोई गिला नही शायद मेरी मंजिल को पाना तुम्हारी ख्वाहिशें पूरी कर दे माँ तुम्हारी गोद में सो जाना भर, मेरे सपनों में हकीकत भर दे जी रहा हूँ बहुत सपने और ख्वाहिशों को लिए पर जिस दिन में सो जाऊँ, जब हमेशा के लिए तब भी मुझे तुम अपनी गोद में सुला लेना क्योंकि माँ तुम्हारे आँचल की खुशबू मेरे मन से जाती नही और उस से अच्छी नींद मुझे कहीं और आती नही। |