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Rated: E · Poetry · Experience · #2220898
About those who just think about themselves
पैसे और मान में



इस घोर कलयुग में
कितने धोखे देखे हैं
ज्ञान अच्छा बनने का देते
खुद चोरी करके बैठे हैं |

कितना भी शक हो मन में
भावों में बह जाते हैं
दिखावटी आचरण को देख
हम खुद को समझाते हैं |

लगता वो प्रतिबिम्ब हैं मेरे
हर बार यूँ चूक जाते हैं
हर मतलबी चाल में वो
अच्छा ही दिखलाते हैं |

कुछ पैसे और मान में
वो इतने अंधे हो जाते हैं
जिसका खाया, जिससे पाया
फिर भी अपनी बजाते हैं |

माना खुश होंगे इस सब से
कितनों का दिल दुखाते हैं
इन्हीं कारणों के चलते
सबके मन से दूर हो जाते हैं |

अब भी अगर नहीं सुधरे
कब तक दूकान चलाओगे
एक दिन वो ऐसा आएगा जब
पाई-पाई का हिसाब चुकाओगे ।
© Copyright 2020 Feelings (shivomgupta at Writing.Com). All rights reserved.
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