पचपन साल के अपराधी को फाँसी की सजा सुनाते हुये जज साहब ने उसकी आखिरी इच्छा पूछी ।
अपराधी ने कहा , हुजूर बेटे की शादी देखने की तमन्ना पूरी कर दीजिये ।
जज ने पूछा , तुम्हारे बेटे की शादी कब है ?
तो अपराधी ने बताया , अभी मेरी शादी नहीं हुई है । मेरी शादी के बाद बेटा होगा तब उसकी शादी के बारे में सोचेंगे ।
जज ने कहा , यह संभव नहीं है ।
अपराधी बोला , हुजूर आपके बेटे की शादी कर दीजिये , वही देखकर संतुष्ट हो जाऊँगा । जज साहब बोले , मेरे दोनों बेटे की शादी हो चुकी है इसलिये यह भी संभव नहीं है ।
अपराधी तपाक से बोल पड़ा , हुजूर मेरी फाँसी की सजा माफ कर दीजिये । यह तो संभव है ना ?
जज ने कहा , ऐसा नहीं हो सकता । यह बिल्कुल असंभव है ।
अपराधी झल्लाते हुये चिल्लाया , आपसे कुछ भी संभव नहीं तो इस्तीफा क्यों नहीं दे देते ?
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