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Rated: E · Poetry · Emotional · #2092499
About a struggling life
ज़िन्दगी की किस कसौटी पर आज मैं खड़ा हूँ?
कोई राह नही सूझ रही
उलझन मे सुलझन ढूंढनें पर अड़ा हूँ
कहीं आस तो नहीं टूट रही?

जिन सपनों को संजोये मेैं घर छोड़ आया
वो बात कहीं छूट रही
खुद को जब मेैंने अकेला ही पाया
लगता हेै जेसे जिन्दगी ही रुठ गई

कभी अशा तो कभी निराशा
पर हिम्म्त अभी टूटी नही
अब क्या होगा, अब खुद से लड़ रहा हूँ
और मंजिल को पाने चल पड़ा हूँ

ज़िन्दगी की ...............

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