साँझ की नीरवता में
धुँधला नजर आ रहा है वो तन्हा चाँद
जाने कितनी स्मृतियाँ,
मन में जगाता है किस किस की याद
संध्या का आरम्भ है,
दिवस में तपकर ढल गया आफ़ताब
दुआएँ उठती है दिल से,
असर करे अब मेरी फरियाद
तरुओ का झुरमुट,
प्रतीत होता है चाँद का दीदार करता हुआ
कभी बादलों में
छुपने लगता है चाँद श्रृंगार करता हुआ
होले होले निकलना
एक उम्मीद की किरण जगाता है
फिर नजर आना
जीतने की प्रेरणा बन जाता है
वृक्षों का कुंज भी
अब अंधेरे में स्याह होने लगा है
तम घिरने लगा है,
चाँद का धुँधलापन भी खोने लगा है
विस्मय होता है कि
अंधेरेे में सब स्याह हो जाता है
पर धुँधला चाँद
अंधेरे में ही दीप्तिमान हो पाता है
छुटपुट साँझ ढल जाएगी,
अंधेरे की चादर ओढ़े रजनी आएगी
तम के भय को मिटाने
चाँद से उदित एक कांति आएगी
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