Lockdown during CORONA Virus. |
ढहराव है इन दिनों ज़िन्दगी में तो गीला क्यों है, मिले है कुछ पल फुर्सत के तो गीला क्यों है। रुक कर ज़रा देख लें रफ़्तार क्या थी तेरी जद्दोजहद-ए-ज़िन्दगी की , था आखिर क्या रुबाब तेरी सख्शियत का, सोच आज कैसे बगैर उस जद्दोजहद और रुबाब के भी, तेरा काम चल रहा कैसे और क्यों है, ढहराव है इन दिनों ज़िन्दगी में तो गीला क्यों है। माना के है तेरी भी कुछ गरज़ इस जहाँ को मुक्कम्मल होने को, है तेरा भी कुछ असर पूरा करने को कुछ मंसूबो को, पर सोच ज़रा आज उन मंसूबो और मुक्कम्मल जहाँ का वजूद क्या और क्यों है, ढहराव है इन दिनों ज़िन्दगी में तो गीला क्यों है। याद कर ले उन बिछड़े हुए साथियो को इन फुर्सत के लम्हो में, पूछ लें उन भूले हुए रिश्तों को अपने होने की दस्तक उन्हें भी दे, भूल जा आज उस खुदगर्ज़ दुनिया के वसूल को जो कहता है के उन साथियो और रिश्तों की मुझे जरुरत क्यों है, ढहराव है इन दिनों ज़िन्दगी में तो गीला क्यों है। दौलत आज बेमानी है, शोहरत आज फ़िज़ूल है, अहम् आज वहम है, इज़हार-इ-शान आज एक भूल है, जब है ये दौलत, शोहरत, अहम् और शान बेअसर, तो दौड़ता उम्र भर इनके पीछे इंसान क्यों है, ढहराव है इन दिनों ज़िन्दगी में तो गीला क्यों है। ढहराव है इन दिनों ज़िन्दगी में तो गीला क्यों है, मिले है कुछ पल फुर्सत के तो गीला क्यों है। इन फुर्सत के पलों में, उलझन से परे, ये कुछ खयालात, पेश-इ-योगेश है |