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Rated: E · Poetry · Personal · #2307150
It's my first poem here
चलने लगी है हवाएँ,
ख्वाबों के दामन में मेरे,
और बिखर रही हैं चाहतें,
समित कर राखी थी जो मैंने,
ख्वाबों के दामन में मेरे,
गिरने लगी है हसरतो की शाखाएं,
और लिपट रही है हकीकत की राँख से,
ख्वाबों के दामन में मेरे,
मुस्कुराहटों के पत्तो पर,
लिपटी घमो की शबनम को हटाये जा रही है हवाएं,
ख्वाबों के दामन में मेरे।
© Copyright 2023 Ved bakshi (vedbakshi at Writing.Com). All rights reserved.
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